ना मिलना तो एक बहाना है
शायद उन्हें हमें आजमाना है
उनका बस दिदार हो जाये
राह में तकते जमाना है
संभल कर मारो पत्थर यारों
कांच का ये मेरा आशियाना है
मै तो अदना सा हूँ एक इन्सान
ना कोई घर है ना घराना है
जमाना तो बदला है इस कदर
ना है हया ना कुछ शरमाना है
मेरा तो बस तुझसे है रिश्ता
छोटासा मेरा ये फ़साना है
झूट कहोगे,पर कहाँ तक कहोगे ?
जबाँ को आखिर कतराना है
जिंदगी में जियो कुछ इस तरह
शबनम को रेत पर बरसाना है
आंसू गर आ गए आंखोसे
चुपके से इन्हें यूँ थमाना है
रूह का रिश्ता रूह से 'साजिद '
बस प्यार से इसे निभाना है