Friday, October 10, 2008
Thursday, October 2, 2008
We are so civiled and How we approve our self
हम कितने सभ्य हो गये हैं ..आज हमे आज़ाद हुए कितने बरस बीत गये हैं और हमारे सभ्यता के कारनामो से तो आज के पेपर भरे रहते हैं नमूना देखिए बस में बाज़ार में किसी की जेब कट गयी है मामूली बात पर कहसुनी हो गयी .सड़क दुर्घटना का कोई शिकार हो गया जिसे तुरंत हस्पिटल पहूचाना है पर हम लोग देखा अनदेखा कर के निकल जाते हैं .क्या करे कैसे करें दफ़्तर के लिए देर हो रही है ..कौन पुलिसे के चक्कर में पड़े आदि आदि ..यही सोचते हुए हम वहाँ से आँख चुरा के भाग जाते हैं ..सच में कितने सभ्य हो गये हैं ना हम
हमारा जीवन दर्शन बदल चुका है वह भी उस देश में जहाँ पड़ोसी की इज़्ज़त हमारी इज़्ज़त गावं की बेटी अपनी बेटी .अतिथि देवा भावा ,सदा जीवन उच्च विचार .रूखा सूखा चाहे जो भी खाओ मिल बाँट के खाओ ………..जैसे हाँरे जीवन दर्शन के अंग रहे हैं ..आज आपके पड़ोसी के साथ कुछ भी हो जाए पर आपको पता ही नही चलता है ..सबको अपनी अपनी पड़ी है यहाँ आज कल ..कोई किसी मुसीबत में पड़ना ही नही चाहता है छाए उस वयक्ति को अपने जीवन से हाथ धोने पड़े ..पर हम तोह सभ्य लोग हैं क्यूं सोचे किसी के बारे में ..???
काश की हम अपनी उस पुआरनी जीवन दर्शन को फिर से वापस ला पाते और सच में सभ्य कहलाते ..अभी भी समाए नही बीता है यदि समाज़ के कुछ लोग भी अपने साथ रहने वालो के बारे में सोचे तोह शायद बाक़ी बचे लोगो की विचारधारा यह देख के कुछ तो बदलेगी ..सिर्फ़ ज़रूरत है कुछ साहसी लोगो के आने की आगे बढ़ के पहल करने की ..अपनी सोई आत्मा को जगाने की ..तब यह वक़्त बदलेगा तब हम सचमुच में ही सभ्य कहलाएँगे !!